सापों को लेकर जितनी जिज्ञासाएं जनमानस में हैं शायद उतनी किसी अन्य जानवर के बारे में नहीं.... पिछली पोस्ट पर विचार शून्य ने एक प्रश्न पूछ...
सापों को लेकर जितनी जिज्ञासाएं जनमानस में हैं शायद उतनी किसी अन्य जानवर के बारे में नहीं....पिछली पोस्ट पर विचार शून्य ने एक प्रश्न पूछा है-
सांप काटने के निशान:
सांप काटने के निशान:
"विषैले सर्प जब काटते हैं तो उनके कटाने कि जगह पर एक या दो दातों के निशान ही होते हैं और जब विषहीन सर्प काटता हैं तो काटने वाली जगह पर कई दातों के निशान होते हैं. क्या ये बात सही है?"
विचार शून्य जी ..दरअसल विषैले सापों के ऊपरी जबड़े के दो कैनाइन सरीखे दांत विशेष रूप से बढ कर विषदंत का रूप ले लेते हैं ...और दंश के समय यही पहले शिकार पर धंसते हैं -ये और दाँतों की तुलना में मोटे होते हैं अतः इनका निशान भी ज्यादा स्पष्ट होता है -कोबरा के विषदंत का निशान तो सूजे के चुभोने सरीखा दिखता है बाकी मोटी सुई चुभोने जैसा दिखते हैं ....विषैले सापों में ऊपर पहले के दो निशान . . मोटे होते हैं और उन्ही के नीचे हल्के निशान दोनों ओर रहते हैं और विषहीन सांप के दंश में विषदंत के मोटे निशान नदारद होते हैं ...बाकी हल्के तो रहते ही हैं ..हाँ हम विषैले सापों का सचित्र वर्णन अवश्य करेगें.
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साहित्य में सांपों का गलत वर्णन:
दर्शन जी जाकिर जी के बजाय आपके प्रश्न (एक बात आज तक नहीं समझ पाया- मुंशी प्रेमचंद जी ने "मन्त्र" कहानी क्यों लिखी? ) का उत्तर मैं दे देता हूँ- प्रेमचंद ही नहीं आगे भी कई समादृत साहित्यकारों ने सापों के बारे मे अनर्गल लिखा है ..शिवानी ने एक उपन्यास में लिखा कि विषैले साप को काटते ही मुंह से झाग निकला और दंशित व्यक्ति काल कवलित हो गया ..निश्चय ही उन्हें सापों के बारें में सही जानकारियाँ नहीं थीं या वे हासिल नहीं कर सके ..मगर उनकी कहानियों के अन्य सामाजिक तथ्यों के हम अनदेखी नहीं कर सकते ..वे अपने काल के महान रचनाकारों में से थे....
दर्शन जी जाकिर जी के बजाय आपके प्रश्न (एक बात आज तक नहीं समझ पाया- मुंशी प्रेमचंद जी ने "मन्त्र" कहानी क्यों लिखी? ) का उत्तर मैं दे देता हूँ- प्रेमचंद ही नहीं आगे भी कई समादृत साहित्यकारों ने सापों के बारे मे अनर्गल लिखा है ..शिवानी ने एक उपन्यास में लिखा कि विषैले साप को काटते ही मुंह से झाग निकला और दंशित व्यक्ति काल कवलित हो गया ..निश्चय ही उन्हें सापों के बारें में सही जानकारियाँ नहीं थीं या वे हासिल नहीं कर सके ..मगर उनकी कहानियों के अन्य सामाजिक तथ्यों के हम अनदेखी नहीं कर सकते ..वे अपने काल के महान रचनाकारों में से थे....
सांप काटे व्यक्ति को नदी में क्यों बहाते हैं?
तारकेश्वर गिरि जी, हाँ ऐसी मान्यता है कि साँप के काटे मरे व्यक्ति को नदी में बहा देना चाहिए ...हो सकता है इस धारणा के पीछे यह चाहना रही हो कि मृतक हो सकता है जहर उतर जाय और कभी वापस लौट आये ..मनुष्य बहुत आशावादी होता है और हाँ हो सकता है ऐसा कोई चमत्कार घटित हुआ भी हो कि नदी में प्रवाहित करने के बाद जहर की मारकता से कोई बच गया हो ..और यह परम्परा बनती गयी हो ....जला देने पर तो सब कुछ ख़त्म ...
जानकारी के अभाव में मरते हैं लोग:
रश्मि स्वरुप ने मजे की बात कही कि मर तो जाते है लोग घबरा कर अथवा हृदयाघात से और दोषी ठहराया जाता है सांप ...यह कहते हैं साप कहाँ काटते हैं लोग कटा बैठते हैं. दोनों बातें काफी हद तक सच है ...विषहींन सापों के काटने से मौतों का बड़ा सिलसिला लगा रहा है. यह अज्ञानता और भय का प्रभाव है ...सापों को लेकर जनमानस में बहुत भय व्याप्त है ..इसका कारण यह भी है कि लोग अक्सर साप कटने के बाद कारगर चिकित्सा के अभाव में मर जाते हैं -इसलिए साप का काटना ही मौत का पर्याय /फरमान समझ लिया जाता है ..यहाँ जनजागरण की बड़ी जरूरत है .
बाप रे ..नागराज के विषदंत ...
राजेश जी आपकी बात का इशारा मैं समझ रहा हूँ -हमें वैज्ञानिक बातों पर ज्यादा जोर देना चाहिए ..मगर यह बिना अनर्गल बातों के खंडन के कैसे संभव है? कुछ और जिज्ञासाओं पर चर्चा हम अगली पोस्ट में करेगें !
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