सर्प संसार की पिछली पोस्ट ' आखिर क्या होता है, जब खून में उतरता है सांप का ज़हर? ' के क्रम में कई पाठकों ने यह जानना चाहा है ...
सर्प संसार की पिछली पोस्ट 'आखिर क्या होता है, जब खून में उतरता है सांप का ज़हर?' के क्रम में कई पाठकों ने यह जानना चाहा है कि सर्प के विष से आदमी की मृत्यु क्यों हो जाती है? पाठकों की इन जिज्ञासाओं के क्रम में प्रस्तुत है डॉ. दिनेश मिश्र द्वारा प्रस्तुत यह महत्वपूर्ण जानकारी।
सर्प विष कैसे काम करता है?
-डा. दिनेश मिश्र
कुद दिन पहले समाचार पत्रों में प्रकाशित एक खबर अंचल में जनचर्चा का
विषय बनी, व समाचार चैनल में भी लगातार दिखायी जाती रही। बात यह थी कि रायपुर
के एक मोहल्ले में एक युवक ने सर्प का जहर पीने का प्रदर्शन सार्वजनिक रूप
से किया। उस युवक ने सर्प के मुँह से निकलने वाले द्रव को मुख खोलकर निगल
लिया इस दृश्य को अनेक लोगों ने देखा। सर्प का विष पीने वाले युवक के इस
हैरत अंगेज कारनामे की चर्चा फैलने लगी। लोगों में आश्चर्य इस बात को लेकर
रहा कि सांप का जहर पीने के बाद भी युवक पर जहर का असर क्यों नहीं हुआ। जब
उस युवक से पूछा गया तब उसने बताया यह कला उसने अपने गुरू से सीखी है व
साधना का परिणाम है।
इस घटना के कुछ समय पहले ही भिलाई से खबर आयी कि वहां एक सांप पकड़ने वाले युवक मोहन को सांप पकड़ने के लिए बुलवाया गया था उसने सांप पकड़ने के बाद उससे खिलवाड़ करते हुए, अपने गले में लिपटा कर घूमता रहा। कुछ देर के बाद उसने सांप के मुँह को दबाते हुए उसके मुँह को अपने मुँह में डालकर चूस लिया। ऐसा उसने दो बार किया जब तीसरी बार मोहन ने सांप के मुँह को दबाते हुए मुँह में डाला तो सर्प फिसल गया व उसके मुँह में ही अपने विषदंत गड़ा लिये। दंश का अहसास होते ही मोहन ने सांप को वापस छोड़ दिया। तब तक सांप का जहर मोहन के शरीर में फैलने लगा, आधे घंटे के भीतर वह गिर पड़ा। उसके गुरू ने आकर उसकी झाड़ फूंक भी की पर कुछ देर बाद मोहन की मृत्यु हो गई। इन दोनों मामलों को लेकर लोगों में उत्सुकता बढ़ गई थी कि एक व्यक्ति जो सांप का जहर स्वयं पी रहा है व उसे कुछ नहीं हुआ, वह स्वस्थ है वहीं दूसरा व्यक्ति जो सपेरा है, सांप पकड़ने की कला जानता है, सांप का मुँह चूसने के प्रयास में एक ही दंश में मारा गया। दूसरे दिन भी ये दोनों घटनाएं चर्चामें रही। शाम को एक न्यूज चैनल ने मुझसे इन घटनाओं पर मत मांगा।
मैंने उनका जवाब देते हुए कहा कि सर्प के शरीर में विष उसके शरीर में पाये जाने वाली विष ग्रंथि में होता है, जो विषदंत से जुड़ी होती है। जिस प्रकार हमारे शरीर में लार ग्रंथि होती है उसी प्रकार सर्प के शरीर में भी लार ग्रंथि होती है जो विष ग्रंथि के रूप में परिवर्तित हो जाती है। सर्प के शरीर में बनने वाला विष उसकी विष ग्रंथि में बनने वाला द्रव है जो सर्प के द्वारा खाये गये पदार्थो से बनता है इसलिए वह एक प्रकार का जैविक प्रोटीन ही होता है। यदि कोई व्यक्ति इस विष(प्रोटीन) को मुख से ग्रहण करता है तो वह विष उसके आमाशय में चला जाता है तथा हमारे शरीर के अमाशय में मौजूद अम्ल व पाचक एन्जाइम उस प्रोटीन को पचा ले जाते है तथा वह आहार नाल से धीरे-धीरे शरीर से बाहर हो जाता है तथा रक्त में नहीं घुल पाने के कारण विष शरीर पर प्रभाव नहीं डाल पाता है।
[post_ads]
कभी सर्प विष को मुख से निगलने का कोई प्रदर्शन कर रहा हो उसे यह ध्यान रखना चाहिए उस व्यक्ति के मुँह में जीभ में व पेट में छाले या अल्सर न हो अन्यथा छाले के कारण विष अवशोषित होकर रक्त में मिल जाएगा जिससे विष पान का प्रदर्शन करने वाले व्यक्ति की जान खतरे में पड़ सकती है। सर्प विष को मुँह में जाने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह बात पहले भी लोगों को मालूम थी इसलिए पहले भी सर्प दंश होने पर प्राथमिक चिकित्सा के लिए उस दंशित स्थान को मुँह से चूस-चूस कर जहर खींचने की व थूंकने की विधि उपयोग में लायी जाती रही। सर्प दंश से पीड़ित व्यक्ति के दंशित स्थान को मुँह से चूस-चूसकर विष हटाने का काम कुछ अंचलों में अभी भी होता है। क्योंकि उन्हें मालूम रहता है कि मुँह में यदि छाले नहीं है तो जहर का असर नहीं होगा।
इस घटना के कुछ समय पहले ही भिलाई से खबर आयी कि वहां एक सांप पकड़ने वाले युवक मोहन को सांप पकड़ने के लिए बुलवाया गया था उसने सांप पकड़ने के बाद उससे खिलवाड़ करते हुए, अपने गले में लिपटा कर घूमता रहा। कुछ देर के बाद उसने सांप के मुँह को दबाते हुए उसके मुँह को अपने मुँह में डालकर चूस लिया। ऐसा उसने दो बार किया जब तीसरी बार मोहन ने सांप के मुँह को दबाते हुए मुँह में डाला तो सर्प फिसल गया व उसके मुँह में ही अपने विषदंत गड़ा लिये। दंश का अहसास होते ही मोहन ने सांप को वापस छोड़ दिया। तब तक सांप का जहर मोहन के शरीर में फैलने लगा, आधे घंटे के भीतर वह गिर पड़ा। उसके गुरू ने आकर उसकी झाड़ फूंक भी की पर कुछ देर बाद मोहन की मृत्यु हो गई। इन दोनों मामलों को लेकर लोगों में उत्सुकता बढ़ गई थी कि एक व्यक्ति जो सांप का जहर स्वयं पी रहा है व उसे कुछ नहीं हुआ, वह स्वस्थ है वहीं दूसरा व्यक्ति जो सपेरा है, सांप पकड़ने की कला जानता है, सांप का मुँह चूसने के प्रयास में एक ही दंश में मारा गया। दूसरे दिन भी ये दोनों घटनाएं चर्चामें रही। शाम को एक न्यूज चैनल ने मुझसे इन घटनाओं पर मत मांगा।
मैंने उनका जवाब देते हुए कहा कि सर्प के शरीर में विष उसके शरीर में पाये जाने वाली विष ग्रंथि में होता है, जो विषदंत से जुड़ी होती है। जिस प्रकार हमारे शरीर में लार ग्रंथि होती है उसी प्रकार सर्प के शरीर में भी लार ग्रंथि होती है जो विष ग्रंथि के रूप में परिवर्तित हो जाती है। सर्प के शरीर में बनने वाला विष उसकी विष ग्रंथि में बनने वाला द्रव है जो सर्प के द्वारा खाये गये पदार्थो से बनता है इसलिए वह एक प्रकार का जैविक प्रोटीन ही होता है। यदि कोई व्यक्ति इस विष(प्रोटीन) को मुख से ग्रहण करता है तो वह विष उसके आमाशय में चला जाता है तथा हमारे शरीर के अमाशय में मौजूद अम्ल व पाचक एन्जाइम उस प्रोटीन को पचा ले जाते है तथा वह आहार नाल से धीरे-धीरे शरीर से बाहर हो जाता है तथा रक्त में नहीं घुल पाने के कारण विष शरीर पर प्रभाव नहीं डाल पाता है।
[post_ads]
पर यदि सर्प का यही विष, किसी मनुष्य या अन्य प्राणी के शरीर में विषदन्त द्वारा पहुंच जाता है तब तो वह प्राणघातक हो जाता है! विष खून में मिलकर मांस पेशियों, तंत्रिका तंत्र, रक्त संचरण, हृदय पर, श्वसनतंत्र पर अपना प्रभाव डालता है क्योंकि खून में ऐसे पाचक एन्जाइम व अम्ल नहीं होते जो विष के प्रोटीन को पचा सके। मैंनें कहा, इसीलिए सर्प विष की प्रतिरोधक दवा एन्टी स्नेक वेनम भी नस के जरिये खून में पहुंचा दी जाती है। यदि एन्टी स्नेक वेनम को टेबलेट या सिरप के रूप में बनाया जावेगा तो वह भी प्रभावी नहीं होगा, वह पेट में पहुंचकर प्रभावहीन हो जाएगा। जबकि इंजेक्शन के रूप में लगाने पर वह सर्प विष के प्रभाव को खत्म करती है।
कभी सर्प विष को मुख से निगलने का कोई प्रदर्शन कर रहा हो उसे यह ध्यान रखना चाहिए उस व्यक्ति के मुँह में जीभ में व पेट में छाले या अल्सर न हो अन्यथा छाले के कारण विष अवशोषित होकर रक्त में मिल जाएगा जिससे विष पान का प्रदर्शन करने वाले व्यक्ति की जान खतरे में पड़ सकती है। सर्प विष को मुँह में जाने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह बात पहले भी लोगों को मालूम थी इसलिए पहले भी सर्प दंश होने पर प्राथमिक चिकित्सा के लिए उस दंशित स्थान को मुँह से चूस-चूस कर जहर खींचने की व थूंकने की विधि उपयोग में लायी जाती रही। सर्प दंश से पीड़ित व्यक्ति के दंशित स्थान को मुँह से चूस-चूसकर विष हटाने का काम कुछ अंचलों में अभी भी होता है। क्योंकि उन्हें मालूम रहता है कि मुँह में यदि छाले नहीं है तो जहर का असर नहीं होगा।
(लेखक डा. दिनेश मिश्र छत्तीसगढ़ के जाने माने नेत्र विशेषज्ञ हैं और अंधविश्वास के खिलाफ लम्बे समय से अलख जगा रहे हैं।)
COMMENTS