सर्प प्रजाति की बहुलता और विविधता से भरे इस देश में हमें इनके सम्बन्ध में खेदजनक ढ़ंग से काफी कम जानकारी है। इनकी पहचान, सर्पदंश और इसस...
सर्प प्रजाति की बहुलता और विविधता से भरे इस देश में हमें इनके सम्बन्ध
में खेदजनक ढ़ंग से काफी कम जानकारी है। इनकी पहचान, सर्पदंश और इससे बचाव
आदि के सम्बन्ध में इसी ब्लॉग पर पहले भी कई पोस्ट्स आ चुकी हैं। इसी कड़ी
में आज चर्चा उस समुदाय की भी जो परंपरागत रूप से इसी प्रजाति पर आश्रित
है। पढि़ए एक रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक लेख-
-अभिषेक मिश्र
भारत में इस पेशे से जुड़ी मुख्य जनजातियां कालबेलिया और कंजर हैं। स्वभाव से घुमंतू यह जनजाति अपनी पारंपरिक पोशाक और हाथ में ली पिटारी से सहज ही पहचान में आ जाती है, जिसमें अपनी पसंद और सुविधानुसार सर्पों को ये रखे होते हैं। लंबे बाल, पगड़ी, कानों और गले में रंग-बिरंगे पत्थरों के आभूषण पहने ये सँपेरे किसी भी आम भीड़-भाड़ वाली जगह पर बीन बजा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते देखे जा सकते हैं।
इसके अलावे नाग पंचमी, मनसा पूजा जैसे आयोजनों के दौरान भी ये काफी देखे जाते हैं। व्यवसाय के दृष्टिकोण से प्रचलित सर्पों में कोबरा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसके बाद रसेल वाइपर्स, पाइथन आदि आते हैं। साँपों को लेकर आम जन मानस ज्यादातर एक भ्रम और कुछ गलतफहमियों के साथ जीता है।
विषदंत तोड़ने की क्रिया |
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आम प्रचलित मान्यता के विपरीत साँपों के कान नहीं होते। वो अपनी सामने हिलती बीन को शत्रु समझ उसके मूवमेंट के हिसाब से खुद को ऐडजस्ट करते रहते हैं, जो दर्शकों को उनके नृत्य सी अनुभूति देता है। अल्पायु में पकड़े गए साँप प्रशिक्षण के क्रम में बीन पर वार भी कर देते हैं, मगर इस क्रम में उन्हे लगातार लगती चोट उन्हे अपनी इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखने पर भी विवश कर देती है।
सतत अभ्यास से जुड़ा व्यवसाय होने के नाते इनके यहाँ गुरु की भी बड़ी महत्ता है। एक अन्य मान्यतानुसार विशिष्ट अवसरों पर ये अपने गुरु के साथ साँपों के जहर का भी पान किया करते हैं। सर्पों से जुड़ी तकनीकी जानकारी न रखने वालों को यह अचंभित कर सकता है, मगर वास्तविकता यह है कि मुँह या पेट में कोई अल्सर, घाव या छाले नहीं हैं तो सीधे शरीर में जाने पर यह जहर नुकसान नहीं करता। साँपों के काटने पर भी जब यह जहर हमारे रक्त के संपर्क में आता है, तभी नुकसान पहुँचता है।
जहरमोहरा औषधि |
साँपों को प्रशिक्षित करने के क्रम में कई बार ये उनके विषदंत तोड़ दिया करते थे। कई जगहों पर उनके मूल फण को निकाल कर सर्जरी के माध्यम से दूसरे फण लगा दिये जाते थे, क्योंकि दर्शकों की रुचि उनके फण देखने में ही ज्यादा रहती है। कई जगह सिलाई के उनके कण्ठ ऐसे सील दिये जाते थे कि वो विष का वमन न कर सकें, ऐसी क्रूरता सर्पों के लिए प्राणघातक होती थी।
ऐसे में 1972 में भारत में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के माध्यम से साँपों से जुड़ी क्रूरता और व्यवसाय पर प्रतिबंध लगा दिया गाय। पशुओं के प्रति क्रूरता के विरुद्ध काम कर रहे कई एनजीओ आदि के प्रयासों और प्रचार-प्रसार ने भी इस व्यवसाय को काफी हतोत्साहित किया। आधुनिक होते समाज में समय के साथ साँपों को लेकर धारणाएँ बदलीं। मनोरंजन के बढ़ते संसाधनों ने भी इस विधा की ओर आकर्षण को कम किया। ऐसे ही कई अन्य कारण रहे जिनसे एक बड़ी आबादी जो अपने पुश्तैनी व्यवसाय पर आश्रित थी इनसे वंचित हुई।
आवश्यकता है कि इनक समुचित पुनर्वास किया जाए। इनके अनुभवों और पारंपरिक ज्ञान का लाभ साँपों के हित की योजनाओं में भी किया जा सकता है। ये आबादी वाले क्षेत्र को विषैले साँपों से सुरक्षित रखने में सहायक हो सकते हैं। चिड़ियाघरों और सर्प पार्कों में भी इनकी सेवा ली जा सकती है। बीन बजाना जो कि एक पारंपरिक और विशिष्ट काला है को एक धरोहर के रूप में संरक्षित रखने में भी इनका सहयोग लिया जा सकता है। एक क्रूर व्यवस्था को समाप्त कर भ्रामक मान्यताओं को पृथक कर इनकी वास्तविक विशेषताओं के साथ इन्हे विकास की मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास किया जाना समय की माँग है।
ऐसे में 1972 में भारत में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के माध्यम से साँपों से जुड़ी क्रूरता और व्यवसाय पर प्रतिबंध लगा दिया गाय। पशुओं के प्रति क्रूरता के विरुद्ध काम कर रहे कई एनजीओ आदि के प्रयासों और प्रचार-प्रसार ने भी इस व्यवसाय को काफी हतोत्साहित किया। आधुनिक होते समाज में समय के साथ साँपों को लेकर धारणाएँ बदलीं। मनोरंजन के बढ़ते संसाधनों ने भी इस विधा की ओर आकर्षण को कम किया। ऐसे ही कई अन्य कारण रहे जिनसे एक बड़ी आबादी जो अपने पुश्तैनी व्यवसाय पर आश्रित थी इनसे वंचित हुई।
ज़हर चूसने की क्रिया |
चलते-चलते संपेरों को समर्पित विश्वनाथ तिवारी की यह कविता भी-
साँप निकलता है पिटारी से धीरे-धीरे
नेवले को देखते ही चौकन्ना हो जाता है
भय और क्रोध से काँपता नेवला
साँप पर झपटता है
साँप तेज़ी से फन मारते हुए
नेवले को कमर से लपेट लेता है
नेवला छटपटाता है
और साँप के मस्तक पर दाँत गड़ा देता है
दोनों एक दूसरे से गुँथे
देर तक जूझते-छटपटाते हैं
सँपेरा अपनी भाषा में बोलता रहता है
फुटपाथ की भीड़ तालियाँ बजाकर हँसती हैं
और हँसती रहती है।
और अंत में कोबरा से छेड़छाड़ करता वीडिया, जोकि पिछले दिनों काफी चर्चित रहा है।
और अंत में कोबरा से छेड़छाड़ करता वीडिया, जोकि पिछले दिनों काफी चर्चित रहा है।
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लेखक परिचय:
अभिषेक मिश्र युवा एवं उत्साही लेखक हैं तथा 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के सक्रिय सदस्य के रूप में जाने जाते हैं।
आप 2008 से ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं। आपका ब्लॉग 'धरोहर' हिन्दी ब्लॉग जगत में काफी चर्चित रहा है। अभिषेक मिश्र युवा एवं उत्साही लेखक हैं तथा 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के सक्रिय सदस्य के रूप में जाने जाते हैं।
आपके साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन पर प्रकाशित लेख यहां पर क्लिक करके पढ़े जा सकते हैं।
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