एक अध्ययन के अनुसार भारत में प्रति वर्ष सर्पदंश के चलते जितनी मौतें होती हैं, वे सरकारी आँकड़ों से तीन गुना ज्यादा हैं। साँप क...
साँप काटने पर अधिकाँश लोग सीधे किसी डॉक्टर के पास नहीं जाते। वे पहले किसी जहर उतारनेवाले ओझा के पास जाते हैं। जहर उतारने वाले ओझा यूँ तो दिखावे के लिए तरह-तरह की जड़ी-बूटियाँ लगाते हैं, पर वे अपना मुख्य अस्त्र जहर उतारने वाले मंत्र को ही बताते हैं।
उदाहरण के लिए बांग्लादेश में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि सर्पदंश के शिकार मात्र 3 प्रतिशत व्यक्ति ही सीधे डॉक्टर के पास पहुँचते हैं। ये परिणाम अमेरिकन सोसायटी ऑफ ट्रापिकल मेडिसिन एण्ड हायजीन (American society of tropical medicine and hygiene-ASTMH) की एक बैठक में प्रस्तुत किये गये थे। इसी बैठक में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के डेविड वॉरेल ने बताया कि सर्पदंश से होने वाली वास्तविक मौतों और सरकारी आँकड़ों में बहुत अंतर है। वॉरेल व साथियों ने अपने अध्ययन में पाया कि भारत में हर साल 46 हजार लोग सर्पदंश से मरते हैं जबकि सरकारी आँकड़ा मात्र 20 हजार का है।
सर्पदंश से सर्वाधिक पीडित क्षेत्र एशिया, उप-सहारा अफ्रीका तथा लातिन अमरीका पाए गये हैं। सर्पदंश के अधिकाँश मामले ग्रामीण व गरीब इलाकों में होते हैं। समस्या का सबसे ज्यादा प्रभाव ऐसे दूर-दराज इलाकों में होने की वजह से मरीज अस्पताल तक नहीं पहुँच पाते। शायद यह भी एक प्रमुख कारण है कि सर्पदंश से पीडित व्यक्ति ऐसे में ओझाओं की शरण में जाने के लिए मजबूर होते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सर्पदंश को उपेक्षित कटिबंधीय रोग के रूप में वर्गीकृत किया है। वॉरले के अनुसार ‘इक्कीसवीं सदी में सर्पदंश उपेक्षित बीमारियों में से भी सर्वाधिक उपेक्षित है।’
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