हिस्स, मल्लिका शेरावत की नई फिल्म है, जिसे हॉलीवुड निर्देशक जेनिफर लिंच ने निर्देशित किया है। यह फिल्म नाग-नागिन के सम्बंधों जैसी ...
हिस्स, मल्लिका शेरावत की नई फिल्म है, जिसे हॉलीवुड निर्देशक जेनिफर लिंच ने निर्देशित किया है। यह फिल्म नाग-नागिन के सम्बंधों जैसी काल्पनिक कथा वस्तु पर आधारित है। इसकी कहानी सिर्फ इतनी है कि अमेरिका से आया एक अमेरिकी व्यक्ति जॉर्ज स्टेट्स भारत के जंगल से एक नाग पकड़ कर अमेरिका ले जाता है। नाग की प्रेमिका एक इच्छाधारी नागिन है, जो अपने प्रेमी के पकड़े जाने से नाराज हो जाती है और उसका बदला लेने के लिए अमेरिका पहुँच जाती है। अमेरिका पहुँच कर नागिर अपने प्रेमी की तलाश शुरू करती है और उसके रास्ते में जो भी व्यक्ति आता है, वह उसका सफाया करती जाती है।
क्या सचमुच होते हैं इच्छाधारी नाग/नागिन?
भारतीय जनमानस में इच्छाधारी नाग अथवा नागिर की अनगिन कथाएँ मौजूद हैं। किवदंतियों के अनुसार ये इच्छाधारी नाग अथवा नागिन कोई भी रूप धर सकते हैं, कहीं भी जा सकते हैं। इस प्रकार की धारणााअों को आधार बनाकर हिन्दी में अनेक फिल्में बनी हैं, जैसे नागिन, नगीना, निगाहें आदि।
साथ ही कुछ लोगों का यह भी मानना है कि ऐसे साँपों के पास एक चमत्कारी मणि भी होती है, जिससे रौशनी फूटती रहती है। यदि कोई व्यक्ति उस मणि को हासिल कर ले, तो जिस साँप की वह मणि होती है, वह उसका गुलाम बन जाता है और उसकी सारी आज्ञाओं का पालन करने के लिए विवश हो जाता है। जबकि सच यह है कि ये सारी बातें सरासर बकवास हैं। इन तमाम बातों का सत्य से कोई लेना-देना नहीं है।
साथ ही कुछ लोगों का यह भी मानना है कि ऐसे साँपों के पास एक चमत्कारी मणि भी होती है, जिससे रौशनी फूटती रहती है। यदि कोई व्यक्ति उस मणि को हासिल कर ले, तो जिस साँप की वह मणि होती है, वह उसका गुलाम बन जाता है और उसकी सारी आज्ञाओं का पालन करने के लिए विवश हो जाता है। जबकि सच यह है कि ये सारी बातें सरासर बकवास हैं। इन तमाम बातों का सत्य से कोई लेना-देना नहीं है।
कितना घातक है यह अंधविश्वास?
हिन्दी फिल्मकारों ने समाज में व्याप्त सर्प सम्बंधी अंधविश्वास की धारणाओं का जमकर दोहन किया है। उन्होंने न सिर्फ इस विषय फिल्में बनाकर मोटा मुनाफा कमाया है, वरन समाज में अंधविश्वास की धारणा को और ज्यादा गहरा करने का काम भी किया है। शायद यही कारण है कि लोगों को हर साँप में इच्छाधारी साँप का रूप नजर आता है और वे सीधे उसे यमलोक पहुँचाने का रास्ता खोजने लगते हैं। अक्सर इस वजह से ही साँप क्रुद्ध हो जाते हैं और वे लोगों को अपना शिकार बना लेते हैं।
साँपों के बारे में एक यह भी अंधविश्वास व्याप्त है कि साँप अपनी आँखों में मारने वाले का फोटो कैद कर लेता है, जिसे देखकर उसका प्रेमी अथवा प्रेमिका मारने वाले से बदला लेती है। इस अंधविश्वास के कारण ही लोग साँप को मारने के बाद उसकी आँखें तक नष्ट कर देते हैं।
साँपों के बारे में व्याप्त अंधविश्वास के कारण ही लोग उनके काटने पर अक्सर ओझाओं के चक्कर लगाते हैं, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। जबकि यदि ऐसे लोग साँपों के काटने पर नजदीकी अस्पताल जाएँ, तो उन व्यक्तियों की जान बचाई जा सकती है, जिन्हें साँप ने काट हो।
इस प्रकार यह अंधविश्वास एक ओर जहाँ साँपों के लिए खतरनाक सिद्ध हो रहा है, वहीं उसके कारण हर साल सैकड़ों की तादात में मनुष्य भी असमय काल का ग्रास बनने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
ऐसा भी नहीं है कि इन अंधविश्वासों के जालों को साफ करने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है। चाहे सरकार स्तर पर अथवा गैर सरकारी स्तर पर लोगों को जानकारी प्रदान कर उन्हें अंधविश्वास के कोटरों से बाहर निकलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। लेकिन 'हिस्स' जैसे तमाम प्रयास इस सारे किये-धरे पर एक बार में ही पानी फेर देते हैं। इसलिए यहाँ पर यह सवाल सिर उठा रहा है कि क्या इस तरह की अंधविश्वास फैलाने वाली फिल्मों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए? क्या भारत सरकार को इस बारे में कोई स्पष्ट नीति बनानी चाहिए, जिससे फिल्म और टेलीविजन चैनल आस्था के नाम पर भारत की जनता को गुमराह न कर सकें?
यदि आप इस विषय पर गहराई से कुछ सोचते हैं, तो कृपया अपने विचार अवश्य व्यक्त करें। हो सकता है कि अंधविश्वास के विरूद्ध चलाई जाने वाली मुहिम में आपके विचार ही निर्णायक भूमिका अदा कर जाएँ।
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